बिहार में शादियों के लिए दूल्हे का रेट: “बाबू सरकारी नौकरी में है”
बिहार में शादियों के लिए दूल्हे का रेट: “बाबू सरकारी नौकरी में है”
पटना: बिहार में शादियों का सीजन आते ही एक अनोखी परंपरा सामने आती है—दूल्हे का रेट। खासकर सरकारी नौकरी वाले दूल्हों का रेट काफी ऊँचा होता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और अब भी प्रचलित है।
सरकारी नौकरी वाले दूल्हों की डिमांड
बिहार में सरकारी नौकरी वाले दूल्हों की मांग बहुत अधिक होती है। यह न केवल उनके स्थिर भविष्य का संकेत देता है, बल्कि परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा में भी वृद्धि करता है। “बाबू सरकारी नौकरी में है” का मतलब होता है कि दूल्हे के पास अच्छी सैलरी, सामाजिक सुरक्षा और पेंशन जैसी सुविधाएं हैं, जो उसे एक आदर्श जीवनसाथी बनाती हैं।
दूल्हे का रेट कैसे तय होता है?
दूल्हे का रेट तय करने में कई कारक भूमिका निभाते हैं, जैसे:
- शैक्षिक योग्यता: उच्च शिक्षित दूल्हों की मांग अधिक होती है।
- सरकारी पद: उच्च पद पर कार्यरत दूल्हों का रेट अधिक होता है।
- सामाजिक प्रतिष्ठा: परिवार की सामाजिक स्थिति भी रेट निर्धारण में महत्वपूर्ण होती है।
रेट की स्थिति
- प्रारंभिक स्तर की नौकरी: सरकारी बाबू की नौकरी वाले दूल्हे का रेट 5 से 10 लाख रुपये तक हो सकता है।
- मध्य स्तर की नौकरी: इस श्रेणी में रेट 10 से 20 लाख रुपये तक हो सकता है।
- उच्च स्तर की नौकरी: आईएएस, आईपीएस या अन्य उच्च पद पर कार्यरत दूल्हों का रेट 20 लाख रुपये से ऊपर हो सकता है।
समाज पर प्रभाव
हालांकि यह परंपरा पुरानी है, लेकिन आधुनिक समाज में इसे लेकर कई विचार हैं। कुछ लोग इसे दहेज प्रथा के समान मानते हैं और इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं, जबकि कुछ इसे एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में देखते हैं।
बिहार में दूल्हे का रेट लगाने की परंपरा एक पुरानी सामाजिक प्रथा है जो आज भी प्रचलित है। सरकारी नौकरी वाले दूल्हों की उच्च मांग और रेट दर्शाती है कि समाज में स्थिरता और सुरक्षित भविष्य की कितनी अहमियत है।
बिहार में शादियों के लिए दूल्हे का रेट सरकारी नौकरी वालों के लिए बहुत ऊँचा होता है। जानिए कैसे तय होता है दूल्हे का रेट और इस परंपरा का समाज पर क्या प्रभाव है।